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34 साल बाद बुझी लाल बत्ती

१४ मई २०११

लगातार 34 साल और सात चुनावों के बाद पश्चिम बंगाल में जल रही लाल बत्ती बुझ गई है और हरी बत्ती जल गई. लाल झंडे वाला सीपीएम हरे झंडे वाले तृणमूल की पोरिबर्तन लहर में बह गया.

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Ministerpräsident des indischen Bundesstaates West Bengal, Buddhadeb Bhattacharjee, Foto: DW-Hindi Korrespondenten Prabhakar Mani tewari in Kolkata, eingepflegt: Januar 2011, Zulieferer: Priya Esselborn
बुद्धदेब भट्टाचार्यतस्वीर: DW

मूल रूप से गरीबों की पार्टी समझी जाने वाली लेफ्ट ने 34 साल तक इसी बलबूते पर पश्चिम बंगाल में राज किया. लेकिन आखिरकार उद्योगों को बढ़ावा देने का फैसला सरकार पर भारी पड़ा और उसे अपने अभेद किले को खाली करना पड़ा.

बुद्धदेब भट्टाचार्य की अगुवाई में 2001 में लेफ्ट ने बंगाल में शानदार शुरुआत की और 294 में से 199 सीटों पर जीत हासिल की. 2006 के दूसरे चुनाव में तो रिकॉर्ड ही बन गया, जब उनकी अगुवाई में 235 सीटें हासिल हुईं. लेकिन 2008 के पंचायत चुनावों में हार के साथ ही लेफ्ट को इस बात की भनक मिलने लगी कि अब कहानी खत्म होने वाली है.

सीपीएम का पतन

सीपीएम का पतन उस वक्त शुरू हुआ, जब गरीबों और आम लोगों के नेता बुद्धदेब भट्टाचार्य अचानक कॉर्पोरेट इंडिया की ओर मुड़ गए. पिछली बार सत्ता संभालने के फौरन बाद उन्होंने रतन टाटा को राज्य में फैक्ट्री खोलने की अनुमति दी. उन्होंने बेहतर काम के लिए डू इट नाऊ का नारा दिया. लेकिन पश्चिम बंगाल बंद और हड़ताल के लिए जाना जाता है. यह नारा अपनी मौत मर गया.

Buddhadeb Bhattacharya, left, Communist Chief Minister of eastern Indian state ofWest Bengal inspects a guard of honor during the 58th Independence day celebration in Calcutta, India Sunday, Aug. 15, 2004. (AP Photo/Bikas Das)
हार का सामनातस्वीर: AP

कम्युनिस्ट विचारधारा वाले भट्टाचार्य ने जब पूंजीवादी राह अपना ली, तो सबकी भौंहें चढ़ने लगीं. हालांकि राज्य की तरक्की के लिए उनके फैसले सही थे लेकिन उन्हें इसका नुकसान ही उठाना पड़ा. कई मामलों में तो उन्होंने अपने विशेषाधिकार का भी इस्तेमाल किया.

मुश्किल 2007 में शुरू हुई, जब नंदीग्राम में पुलिस फायरिंग में 14 गांववाले मारे गए. वे वहां केमिकल फैक्ट्री बनाए जाने का विरोध कर रहे थे. इसके बाद टाटा की फैक्ट्री के प्रस्तावित जगर सिंगूर में तृणमूल कांग्रेस ने विरोध प्रदर्शन शुरू किए और सरकार उन्हें संभाल पाने में नाकाम रही. इसका नतीजा यह रहा कि टाटा ने फैक्ट्री हटा देने का फैसला किया, जो पश्चिम बंगाल सरकार और बुद्धदेब भट्टाचार्य के लिए बड़ा झटका साबित हुआ.

इसके बाद 2008 के पंचायत चुनाव और बाद के लोकसभा चुनावों में पार्टी का बुरा हाल हो गया. हाशिए पर पड़ी तृणमूल कांग्रेस अचानक चमक कर उठ खड़ी हुई. इसके बाद सरकार ने माना कि नंदीग्राम में फायरिंग गलत हुई, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी. इसके बाद इस साल जनवरी में मिदनापुर के एक गांव में कथित तौर पर सीपीएम कार्यकर्ताओं ने निहत्थे गांववालों पर गोलियां चला दीं, जिसमें नौ की मौत हो गई. मुख्यमंत्री ने इसकी निंदा की लेकिन विरोध की आग जंगल की आग बन चुकी थी.

सीपीएम बार बार आत्ममंथन की बात करता रहा. लेकिन 2008 के बाद वह चुनाव दर चुनाव हारता ही गया. इसमें पिछले साल कोलकाता म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन के चुनाव भी शामिल हैं. आंकड़े तो बहुत पहले से ही बताने लगे थे कि इस चुनाव में उसकी हार तय है.

बाहर से निवेश नहीं हो पा रहा था और सरकार को राजस्व के लिए सिर्फ खेती पर ही निर्भर करना पड़ रहा था. नतीजा यह हुआ कि सरकारी घाटा 1.86 लाख करोड़ रुपये का हो गया. भट्टाचार्य के मुख्यमंत्री बनने के बाद निवेशक तो बहुत आए लेकिन कामयाबी नहीं मिली.

लेफ्ट का करिश्मा

लेफ्ट ने पश्चिम बंगाल में पहली बार 21 जून, 1977 को ज्योति बसु के नेतृत्व में सरकार बनाई. इमरजेंसी के बाद बनी सरकार ने पहला फैसला किया कि सभी राजनैतिक बंदियों को रिहा कर दिया. अगले साल 1978 में सरकार ने बड़ा फैसला करते हुए नगर निगम चुनाव में वोटरों की उम्र सीमा 21 से घटा कर 18 साल कर दी गई. इसी दौरान आठ साल में पहली बार कलकत्ता यूनिवर्सिटी में चुनाव हुए. इसके बाद 1980 में दसवीं तक की शिक्षा मुफ्त कर दी गई. अगले साल 12वीं तक पढ़ाई मुफ्त हो गई. उसी साल राज्य के कुछ और वामपंथी विचारधारा वाले दल लेफ्ट में शामिल हो गए.

Das Archivbild vom 11.05.96 zeigt den 81 Jahre alten kommunistischen Politiker Jyoti Basu, der am Telefon das Ergebnis der indischen Parlamentswahlen verfolgt.Die Linksallianz hat Basu, der seit 19 Jahren Regierungschef im Bundesstaat Westbengalen ist und zum maxistischen Flügel der Kommunistischen Partei in Indien gehört, zum Kandidaten für das Amt des Ministerpräsidenten bestimmt. COLORplus
करिश्माई ज्योतितस्वीर: picture-alliance/ dpa

1982 में हुए विधानसभा चुनाव में लेफ्ट फ्रंट ने 294 में से 238 सीटों पर जीत हासिल की. 1984 में कांग्रेस को संसदीय चुनाव में रिकॉर्ड 415 सीटें मिलीं. लेकिन पश्चिम बंगाल के 42 सीटों में 26 लेफ्ट के पास रहीं. 1987 में भी लेफ्ट को शानदार सफलता मिली. 1991 में ज्योति बसु के नेतृत्व में लेफ्ट ने चौथी सरकार बनाई. 1995 में पश्चिम बंगाल मानवाधिकार आयोग बना. किसी भारतीय राज्य में यह पहला मानवाधिकार आयोग था. बसु लगभग 25 साल तक मुख्यमंत्री रहे और 2001 में उन्होंने पद छोड़ दिया.

ज्योति बसु के जीवित रहते हुए पश्चिम बंगाल पर लेफ्ट का ही राज रहा. लेकिन इस साल उसे 34 साल में पहली बार हार का सामना करना पड़ा.

रिपोर्टः पीटीआई/ए जमाल

संपादनः एस गौड़

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