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ममता बनर्जीः सड़क से सचिवालय तक

१३ मई २०११

13 साल पहले लोगों ने कहा था कि ममता बनर्जी ने अपने पांव पर कुल्हाड़ी मार ली है. उनके राजनीतिक करियर को खत्म घोषित कर दिया गया. आज वह शिखर पर हैं. लेकिन सफर आसान नहीं रहा.

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indische Eisenbahnministerin und Vorsitzende des Trinamool Congress Mamta (manchmal auch Mamata) Banerjee, Foto: DW-Hindi Korrespondenten Prabhakar Mani tewari in Kolkata, eingepflegt: Januar 2011, Zulieferer: Priya Esselborn
तस्वीर: DW

पश्चिम बंगाल में महज 13 साल के भीतर अपनी पार्टी तृणमूल कांग्रेस को सड़क से सचिवालय तक पहुंचाने वालीं ममता बनर्जी को जुझारूपन अपने शिक्षक और स्वतंत्रता सेनानी पिता प्रमिलेश्वर बनर्जी से विरासत में मिला है.

राज्य में कांग्रेस के छात्र संगठन छात्र परिषद की नेता के तौर पर करियर की शुरुआत करने वालीं ममता ने अपने तमाम मुकाम अपने दम पर हासिल किए. उन्होंने जो चाहा वही किया. जिद उनके स्वभाव का अभिन्न हिस्सा रहा है. ममता की मां गायत्री देवी कहती हैं कि ममता बचपन से ही जिद्दी रही हैं. वह बताती हैं, "एक बार जो ठान लेती थी उसे पूरा कर ही दम लेती थी. जहां भी अत्याचार देखा वहीं उसके खिलाफ डट कर खड़ी हो गई."

Die indische Eisenbahnministerin und Vorsitzende der Partei Trinamool Congress Mamta (Mamata) Banerjee bei einer Rede in Rajarhat, West bengal am 10.12.2010 Schlagworte: Rajarhat; West Bengal, Mamta Banerjee Bilder unseres Korrespondenten von DW-Hindi, Prabhakar Mani Tewari in Kolkata, der uns auch di Rechet an den Bildern überlässt.
तस्वीर: DW

शुरुआत से संघर्ष

अपने जिद्दी स्वभाव के चलते उनको सैकड़ों बार पुलिस और सीपीएम काडरों की लाठियां खानी पड़ीं. इस जिद, जुझारूपन और शोषितों के हक की लड़ाई के लिए मीडिया ने उनको "अग्निकन्या" का नाम दिया. उस समय कांग्रेस को बंगाल में सीपीएम की बी टीम कहा जाता था. लेकिन कांग्रेस में रहते हुए भी ममता ने कभी पार्टी के नेताओं की तरह सीपीएम की चरण वंदना नहीं की. वह सीपीएम के हर गलत फैसले व नीतियों का विरोध करती रहीं. तृणमूल कांग्रेस की यह जुझारू नेता संघर्ष के जरिए बंगाल की सत्ता के शिखर तक पहुंची हैं.

सादगी ममता के जीवन का हिस्सा रही है. सफेद सूती साड़ी और हवाई चप्पल से उनका नाता कभी नहीं टूटा. चाहे वह केंद्र में मंत्री रही हों या सिर्फ सांसद. निजी या सार्वजनिक जीवन में उनके रहन-सहन और आचरण पर कोई सवाल नहीं उठाया जा सकता. उनकी सबसे बड़ी खासियत यह रही है कि वह जमीन से जुड़ी नेता हैं. वह चाहे सिंगुर में किसानों के समर्थन में धरने और आमरण अनशन का मामला हो या फिर नंदीग्राम में पुलिस की गोलियों के शिकार लोगों के हक की लड़ाई का, ममता ने हमेशा मोर्चे पर रह कर लड़ाई की.

Railway Minister Mamata Banerjee talking to reporters after flagging off four new trains from New Jalpaiguri junction on Monday. Die indische Eisenbahnministerin Mamata Banerjee im Gespräch mit der Presse am 13.9.2010
तस्वीर: UNI

राजनीतिक करियर

ममता का राजनीतिक सफर 21 साल की उम्र में 1976 में महिला कांग्रेस महासचिव पद से शुरू हुआ. साल 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए लोकसभा चुनाव में पहली बार मैदान में उतरीं ममता ने सीपीएम के दिग्गज नेता सोमनाथ चटर्जी को पटखनी देते हुए धमाके के साथ अपना संसदीय पारी शुरू की. राजीव गांधी के प्रधानमंत्री रहने के दौरान उनको युवा कांग्रेस का राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया. लेकिन कांग्रेसविरोधी लहर में 1989 में आयोजित लोकसभा चुनाव वह हार गईं.

ममता ने हताश होने के बजाय अपना पूरा ध्यान बंगाल की राजनीति पर केंद्रित कर लिया. 1991 के चुनाव में वह लोकसभा के लिए दोबारा चुनी गईं. उसके बाद हर लोकसभा चुनाव में वह लगातार जीतती रही हैं. चुनाव जीतने के बाद पीवी नरसिंह राव मंत्रिमंडल में उन्होंने युवा कल्याण और खेल मंत्रालय का जिम्मा संभाला. लेकिन केंद्र में महज दो साल तक मंत्री रहने के बाद ममता ने केंद्र सरकार की नीतियों के विरोध में कोलकाता की ब्रिगेड परेड ग्राउंड में एक विशाल रैली का आयोजन किया और मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया. तब उनकी दलील थी कि वह राज्य में सीपीएम के अत्याचार के शिकार कांग्रेसियों के साथ रहना चाहती हैं.

Indian Railway Minister Mamata Banerjee, extreme left, shows the UNESCO's heritage certificate to the audience at a function in Darjeeling, eastern India, Sunday Nov. 26, 2000. The Darjeeling Himalayan Railway was declared as heritage site by UNESCO last year. On its anniversary Sunday, the Indian Railway Minister Mamata Banerjee dedicated the railway to the people of the world. (AP Photo/Ajit Kumar)
तस्वीर: AP

कांग्रेस से अलगाव

ममता के राजनीतिक जीवन में एक अहम मोड़ तब आया जब साल 1998 में कांग्रेस पर सीपीएम के सामने हथियार डालने का आरोप लगाते हुए उन्होंने तृणमूल कांग्रेस के नाम से अलग पार्टी बना ली. ममता की पार्टी ने जल्दी ही कांग्रेस से राज्य के मुख्य विपक्षी दल का दर्जा छीन लिया. अब उन्होंने अकेले अपने बूते ही तृणमूल कांग्रेस को फर्श से अर्श तक पहुंचा दिया है.

ममता का एकमात्र मकसद बंगाल की सत्ता से वामपंथियों को बेदखल करना था. इसके लिए उन्होंने कई बार अपने सहयोगी बदले. कभी उन्होंने केंद्र में एनडीए का दामन थामा तो कभी कांग्रेस का. साल 1998 से 2001 तक वह एनडीए के साथ रहीं. अक्तूबर 2001 में ममता ने केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार में रेल मंत्री का पद संभाला. लेकिन तहलका कांड की वजह से महज 17 महीने बाद ही इस्तीफा देकर सरकार से अलग हो गईं. उसके बाद कांग्रेस के साथ हाथ मिलाया. जनवरी 2004 में कुछ दिनों के लिए वह फिर केंद्र में मंत्री बनीं. लेकिन उसी साल हुए लोकसभा चुनाव में एनडीए के हार जाने की वजह से ममता की यह पारी भी छोटी ही रही. साल 2006 में उन्होंने जब एक बार फिर कांग्रेस का हाथ थामा तब से उसी के साथ बनी रहीं.

Railway Minister Mamata Banerjee with MOS E Ahmed and HK Muniappa.
तस्वीर: UNI

एक सीट से मुख्यमंत्री तक

साल 2004 के लोकसभा चुनावों में तृणमूल कांग्रेस को राज्य की 42 में से एक ही सीट मिली थी. उस पर भी ममता ही जीती थीं. लेकिन उसके बाद सिंगुर और नंदीग्राम में किसानों के हक में जमीन अधिग्रहण विरोधी लड़ाई के जरिए ममता गरीबों की मसीहा के तौर पर उभरीं. यही वजह थी कि साल 2009 के लोकसभा चुनाव में तृणमूल की सीटों की तादाद एक से बढ़ कर 19 तक पहुंच गई.

दो साल पहले केंद्र में रेल मंत्री बनने के बाद उन्होंने बंगाल पर नई ट्रेनों व परियोजनाओं की बौछार कर दी. उनका ज्यादातर समय यहीं बीता है. इसके लिए उन्हें विपक्ष की कड़ी आलोचना झेलनी पड़ी है. सीपीएम के लोग उनको देश नहीं बल्कि बंगाल का रेल मंत्री कहने लगे थे.

लेकिन ममता आलोचनाओं की परवाह किए बिना अपनी मंजिल की ओर बढ़ती रहीं. आखिर में बंगाल में वामपंथियों के लगभग साढ़े तीन दशक लंबे शासन का अंत कर ममता ने अपनी मंजिल हासिल कर ही ली है. ममता की मां शायद ठीक ही कहती हैं कि वह जो ठान लेती है, उसे हासिल कर के ही मानती है.

रिपोर्टः प्रभाकर, कोलकाता

संपादनः वी कुमार

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