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'भारत से पहला डेली रिपोर्टर'

४ अगस्त २००९

कुलदीप कुमार नई दिल्ली से डॉयचे वेले की हिंदी सेवा के लिए बीस साल से रिपोर्टिंग कर रहे हैं. बता रहे हैं डॉयचे वेले से जुड़े अपने अनुभवों के बारे में.

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तस्वीर: DW

डॉयचे वेले की हिंदी सेवा के साथ मेरा संबंध लगभग इक्कीस साल पुराना है. 7 दिसम्बर, 1988 को मैंने कोलोन-स्थित मुख्यालय में कम करना शुरू किया था. उस समय हिंदी-उर्दू सेवा के प्रमुख डॉ एरहार्ड गोएबेल-ग्रोस हुआ करते थे. हिंदी सेवा के उप-प्रमुख थे सदा मुस्कुराते रहने वाले शक्ति कुमार सूरी. मेरे वरिष्ठ सहयोगी थे राम यादव, मीनाक्षी पुरी और कमला चोपड़ा.

कोलोन आने से पहले मैं आनंद बाज़ार पत्रिका समूह के अंग्रेजी साप्ताहिक 'संडे' के दिल्ली ब्यूरो में विशेष संवाददाता के रूप में कार्य कर रहा था. मुझे रेडियो पत्रकारिता का ज़रा-सा भी अनुभव नहीं था. लेकिन सभी वरिष्ठ सहयोगियों ने मेरी इतनी मदद की कि शीघ्र ही यह कमी दूर हो गयी और मार्च, 1989 में जब हिंदी सेवा के पच्चीस वर्ष पूरे होने के सिलसिले में आयोजित एक कार्यक्रम में डॉयचे वेले ने शहनाई का पर्याय बन चुके उस्ताद बिस्मिल्लाह खान को विशेष रूप से कोलोन आमंत्रित किया, तो उनसे इंटरव्यू करने की ज़िम्मेदारी मुझ पर डाल कर विभाग ने मुझमें अपना विश्वास व्यक्त किया.

Bismillah Khan
तस्वीर: AP

यह वह समय था जब हम सभी हाथ से ही अपनी स्क्रिप्ट लिखते थे. हमें उपलब्ध होने वाली सूचना भी थोड़ी बासी होती थी. कंप्यूटर का प्रवेश हिंदी और उर्दू सेवा में तब तक नहीं हुआ था और इंटरनेट का तो किसी ने नाम भी नहीं सुना था. हमारा एक भी संवाददाता नहीं था और कभी-कभी कन्हैयालाल नंदन या गौरीशंकर जोशी जैसे वरिष्ठ पत्रकार किसी विशिष्ट व्यक्ति का इंटरव्यू या किसी खास विषय पर कोई लघु फीचर भेज दिया करते थे. यह सामग्री कैसेट पर होती थी जो डाक के ज़रिये हम तक पहुँचता था.

मैं गया तो था तीन साल के अनुबंध पर लेकिन कुछ निजी कारणों से मुझे पांच माह बाद ही वापस आना पड़ा. तब डॉ गोएबेल-ग्रोस ने मुझसे आग्रह किया कि मैं दिल्ली से रिपोर्टिंग शुरू करूं. मुझे टेलेक्स अथॉरिटी कार्ड दिया गया ताकि मैं बिना भुगतान किये टेलेक्स कर सकूं. और इस तरह हिंदी सेवा के लिए रिपोर्टिंग करने का सिलसिला शुरू हुआ जो आज भी जारी है. लगभग हर रोज़ भारत की महत्वपूर्ण घटनाओं पर रिपोर्टिंग करने वाला हिंदी सेवा का मैं संभवतः पहला रिपोर्टर था.

आज डॉयचे वेले की हिंदी सेवा के न केवल श्रोता हर जगह हैं, बल्कि उन तक ताजातरीन घटनाओं की सूचना और उनका विश्लेषण पहुंचाने वाले रिपोर्टर भी देश भर में फैले हुए हैं. पहले जहाँ हम अपनी स्क्रिप्ट हाथ से लिखकर उसे टेलीफोन पर पढ़ दिया करते थे, वहीं अब हम यहीं से अपनी आवाज़ में रिकार्ड करके इंटरनेट के ज़रिये भेजते हैं. कम्प्यूटर पर ध्वनि-संपादन की कला में अब सभी रिपोर्टर दक्ष हैं. डॉयचे वेले की हिंदी वेबसाइट भी उसके प्रसारण की तरह ही लोकप्रिय हो चली है.

पिछले दो दशकों में मुझे अनेक दिलचस्प अनुभव हुए. 1990 में जिन दिनों नेपाल में लोकतंत्र बहाली का आन्दोलन जोरों पर था, तब एक दिन मेरे मित्र दुर्गा सुबेदी मुझसे मिलने 'संडे' के दफ्तर आये. वह 1970 के दशक में नेपाल के भूमिगत क्रांतिकारी आन्दोलन के स्तंभों में से थे और उस समय भी बेहद सक्रिय थे. उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या मैं डॉयचे वेले के लिए भी रिपोर्टिंग करता हूँ? जब मैंने उनसे सवाल किये तो उन्होंने बताया कि नेपाल में डॉयचे वेले को लोग बहुत चाव से सुनते हैं. ऐसा ही एक अनुभव 2004 के लोकसभा चुनाव के दौरान हुआ. मैं लखनऊ से अमेठी जा रहा था. रास्ते में एक क़स्बा पड़ता है--मुसाफिरखाना. वहां एक केमिस्ट की दूकान देखकर मैंने टैक्सी रुकवाई और केमिस्ट से कहा कि टेप रिकार्डर का हेड साफ़ करने के लिए कार्बन टेट्रा क्लोराइड चाहिए. उसने कहा कि यह काम तो वह स्पिरिट से ही कर देगा बिना पैसा लिए. टेप रिकार्डर देखकर उसने पूछा कि क्या मैं रेडियो पत्रकार हूँ? मेरे हाँ कहने पर उसने संस्था का नाम पूछा. जब मैंने कहा डॉयचे वेले तो उसने तुंरत सवाल किया, ''तो क्या आप कुलदीप कुमार हैं?" मुझे भौंचक्का होते देख उसने बताया कि हर शाम वह रोज़ डॉयचे वेले का हिंदी प्रसारण सुनता है.

DW Hörerklubs in Indien DW Anjum Radio Listeners Club
तस्वीर: DW Hörerclub

इस तरह के अनुभव न केवल हमारा मनोबल बढाते हैं बल्कि हिंदी सेवा के उज्जवल भविष्य के प्रति आश्वस्त भी करते हैं. पिछले पैंतालीस वर्षों में उसने लगातार अपने को पहले से बेहतर बनाने की कोशिश की है जो अधिकांशतः सफल रही है. आज रेडियो के सामने नई चुनौतियां हैं. कुछ का संबंध टेक्नोलोजी से है तो कुछ का बदलते समय की बदलती मांग से. नए श्रोताओं की हमसे नयी तरह की अपेक्षाएं हैं. हम सभी मिल कर पूरी कोशिश कर रहे हैं कि उन पर खरा उतर सकें. आशा है कि हिंदी सेवा के स्वर्ण जयंती वर्ष में, यानी अब से पांच साल बाद, हमारा मनोबल और भी ऊंचा होगा और हम श्रोताओं की और भी बेहतर ढंग से सेवा कर रहे होंगे.

कुलदीप कुमार, नई दिल्ली