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जिस दिन रचा गया इतिहास

७ अगस्त २००९

पैंतालीस साल पहले भारत की आज़ादी की 17वीं वर्षगांठ के दिन डॉयचे वेले की हिंदी सेवा का पहला कार्यक्रम प्रसारित किया गया. सचिन गौड़ बता रहे हैं उस दिन के बारे में.

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तस्वीर: DW

कोलोन की शिल्डरगासे स्ट्रीट पर स्थित एक इमारत की चौथी मंज़िल पर बनाया गया था वॉयस ऑफ़ जर्मनी की रेडियो सेवा डॉयचे वेले हिंदी का ऑफ़िस. 15 अगस्त, 1964, दिन शानदार था. भारत के आज़ाद होने का दिन.

पश्चिम जर्मनी से रेडियो तरंगों पर हिंदी कार्यक्रम प्रसारित होने को था. कोलोन शहर से हज़ारों मील दूर बैठे हिंदी भाषियों के साथ संबंधों का एक नया पुल आकार लेने को तैयार होने को था.

Ziehung der Quizeinsendungen zur WM 2006
अब लगते हैं पत्रों के अंबारतस्वीर: DW

हिंदी कार्यक्रम की कमान सुषमा लोहिया और आदम आबूवाला के हाथों में सौंपी गई थी. सब कुछ टेप कर लिया गया था, यहां तक की समाचार भी. कार्यक्रम सिर्फ़ 15 मिनट के लिए था. इसके बावजूद, छोटे से ऑफ़िस में असहजता और तनाव महसूस किया जा सकता था.

निर्धारित समय पर कार्यक्रम शुरू हुआ और सबसे पहले मुख्य संचालक का संदेश प्रसारित किया गया. इस संदेश में पश्चिमी जर्मनी के साथ भारत के सांस्कृतिक, राजनीतिक और आर्थिक रिश्तों को मज़बूत करने की शुभकामनाएं दी गई. समाचारों दो-ढाई मिनट के ही रहे होंगे और उनमें भारत की ख़बरों को प्रमुखता नहीं दी गई थी.

कार्यक्रम में राष्ट्र गान जन गण मन की धुन भी बजाई गई जिसके बाद स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर एक वृतान्त पढ़ा गया. इसमें कई क्षेत्रों में भारत द्वारा किए गए विकास का उल्लेख हुआ और पंडित जवाहर लाल नेहरू के निधन पर अफ़सोस ज़ाहिर किया गया.

15 अगस्त के बाद हर रोज़ कार्यक्रम के प्रसारण का सिलसिला शुरू हो गया. लेकिन उसके साथ ही जन्म लिया एक नई चिंता ने. हिंदी प्रसारक सोचते थे कि क्या किसी ने यह कार्यक्रम सुना भी होगा. और अगर सुना है तो फिर हिंदी कार्यक्रम के बारे में उनकी क्या राय है. बस, शिद्दत से ख़तों का इंतज़ार होने लगा. 100 या हज़ार ख़तों का नहीं. सिर्फ़ एक ख़त का.

आशंका के गहराते काले बादलों के बीच रूपहली किरण तब फूटी जब यूगांडा में रह रहे मेहता परिवार का एक पत्र डॉयचे वेले की हिंदी सेवा को प्राप्त हुआ. मज़े की बात यह है कि ख़त गुजराती में था. तारीफ़ों के फूलों की बारिश सी की गई थी उसमें.

45 साल बीत गए. श्रोताओं के साथ अपनेपन की ख़ुशबू आज भी बरक़रार है. ख़तों से इतर ईमेल, वॉयसमेल और एसएमएस सुविधा के बाद भावनाएं व्यक्त करने का माध्यम कुछ बदला ज़रूर है लेकिन ये साधन हिन्दी सेवा को अपने श्रोताओं के और पास ही लाए हैं.

सचिन गौड़