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जर्मनी के विश्व धरोहर जंगल में नए बसेरे

५ अगस्त २०११

जर्मन राज्य हेसे में लुप्त होती जंगली प्रजातियों को फिर बसाया जा रहा है. हाल में यूनेस्को की तरफ से विश्व धरोहर घोषित जंगल में उन्हें बसेरा मिला है. इस जंगल में बीच के घने वृक्ष हैं जो चीड़ और देवदार जैसे होते हैं.

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तस्वीर: Nationalpark Kellerwald-Edersee

भेड़िएं, ऊदबिलाव, बनबिलाव और गवल, ये कुछ खास जानवार हैं जिन्हें देखने के लिए लोग हेसे के जंगलों में जाते हैं. हेसे में स्थित बीच फॉरेस्ट बच्चों के लिए बड़े आकर्षण का केंद्र साबित हो रहा है. यूनेस्को ने हाल ही में जर्मनी के पांच बीच फॉरेस्ट को विश्व प्राकृतिक धरोहर स्थलों में शामिल किया है. इसके साथ ही ये जंगल उस सूची में शामिल हो गए हैं जिनमें ग्रांड कैनियन, द ग्रेट बैरियर रीफ और गालापागोस द्वीप भी हैं. जर्मनी के अतिप्राचीन बीच जंगलों के कुछ ही भाग अब तक बच पाए हैं.

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ऊदबिलाव को बचाओतस्वीर: DW

हेसे में स्थित 'केलरवाल्ड-एड्रसी राष्ट्रीय उद्यान' भी इनमें शामिल हैं. इन दिनों वहां पेड़ों की कटाई पर पूरी तरह प्रतिबंध हैं. जंगल में अब शाहबलूत और चीड़ के पेड़ उग रहे हैं. लेकिन पेड़ों को बचाने के अलावा वन प्राधिकरण के लोग एक वर्ग किलोमीटर में जंगल की मौलिक प्रजातियों को बसा रहे हैं. वैसे यह पूरा जंगल 6000 हेक्टेयर में फैला है. अन्य बातों के अलावा वन अधिकारियों का लक्ष्य है कि बच्चों को जंगली जानवरों के लिए वन के महत्व के बारे में जागरूक बनाना है.

ऊदबिलाव को वापस लाओ

Unesco Weltkulturerbe Buchenwälder
विश्व धरोहर जंगलतस्वीर: picture-alliance/dpa

किसी जमाने यूरोप के इस हिस्से में नदियों और धाराओं में ऊदबिलाव दिखना आम बात थी. बीसवीं सदी की शुरुआत से नदियों में बढ़ते कीटनाशकों की मात्रा से ऊदबिलाव मरने लगे. इसके अलावा फर के लिए भी उनका शिकार होने लगा. 2001 से इंटरनेशनल यूनियन फॉर कान्सर्वेशन ऑफ नेचर यानी आईयूसीएन ने इस जानवर को लुप्तप्राय जीवों की श्रेणी में रखा. हालांकि वन प्राधिकरण की नीति है कि जंगल में वैसी प्रजातियों को बसाया जाए जो वहां पहले रहा करती थी और यूरोपीय हो.

वास्तव में ऊदबिलाव यहां अमेरिका से आते हैं. केलरवाल्ड-एड्रसी राष्ट्रीय उद्यान के प्रमुख वन रक्षक एलबर्ट हेरनॉर्ल्ड इसे एक समझौता बताते हैं. हेरनॉर्ल्ड कहते हैं. "हमने बहस के बाद कनाडा से ऊदबिलाव लाने का फैसला किया, क्योंकि यूरोपीय ऊदबिलाव के मुकाबले वे कम बीमार पड़ते हैं." ओट्टो और फिनशेन ऐसे ऊदबिलाव हैं जिन्हें यहां लाने के बाद टीके की जरूरत नहीं पड़ी. इस साल इन दोनों ने दो बच्चों को जन्म दिया है. पार्क में इनके बच्चों को देखने के लिए काफी उत्साह है.

पेड़ों और दर्शकों की सुरक्षा जरूरी

जंगल में सबसे शानदार जानवर एक सच्चा यूरोपीय है. गवल जो कि महाद्वीप का सबसे बड़ा जीवित भूमि स्तनपायी है. आईयूसीएन के मुताबिक बीसवीं सदी की शुरुआत में यूरोपीय गवल शिकार के कारण करीब करीब लुप्त हो गए थे. प्रथम विश्व युद्ध के बाद इन्हें बचाने का काम शुरु हुआ. 1996 तक इस जानवर को लुप्तप्राय माना जाता था. लेकिन 2006 के बाद हालात बदले हैं.

इस भारी भरकम जानवर से जंगल में आने वाले पर्यटकों को खतरा बना रहता है. हेरनॉर्ल्ड के मुताबिक, "वे बड़े उग्र होते हैं. अपने बच्चों को बचाने के लिए कुछ भी कर सकते हैं. इस वजह से इन्हें सुरक्षित स्थान पर रखा जाता है." गवल अगर इंसानों के लिए खतरा हो सकते हैं तो छोटे जानवर जंगल के पेड़ों को नुकसान पहुंचाते हैं. मादा हिरण को अपनी तरफ खींचने और जंगल में अपने क्षेत्र को चिह्नित करने के लिए नर हिरण अपनी सींग पेड़ों पर रगड़ते हैं. इस वजह से पेड़ों की छाल खराब हो जाती है. वन रक्षकों को पेड़ बचाने के लिए आस पास जाल लगाने पड़ते हैं.

Unesco Weltkulturerbe Buchenwälder
तस्वीर: picture-alliance/dpa

इस पार्क में बच्चों को जानवरों और जंगल के बारे में सिखाने के लिए लाया जाता है. इसके अलावा इन्हें प्रकृति का अनुभव भी मिलता है. ये बच्चे पिछले साल खोले गए 'जंगल स्कूल' में भी जाते हैं. बीच फॉरेस्ट और जानवरों के बारे में बताने के लिए इस स्कूल में हाईटेक क्लासरूम बनाए गए हैं. इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य है कि क्षेत्र में मौजूद हर छात्र कभी न कभी इस खास स्कूल में आकर जंगल और उसमें रहने वाले जानवरों के बारे में जाने. इस आशा के साथ कि वह जिनको जानते हैं उनकी रक्षा तो जरूर करेंगे. इस पूरे प्रोजेक्ट की लागत करीब 23 लाख यूरो हैं.

रिपोर्ट: चिंपोडा चिमबेलू, केलरवाल्ड एडरसी (आमिर अंसारी)

संपादन: ए कुमार

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