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"खांटी उर्दू शब्दों के लिए हिंदी शब्द सीखे"

११ अगस्त २००९

पाकिस्तान में लाल मस्जिद सैन्य अभियान के समय से शकूर रहीम डॉयचे वेले की हिंदी सेवा के लिए इस्लामाबाद से रिपोर्टिंग कर रहे हैं. सुना रहे हैं पिछले दो सालों के अपने खट्टे मीठे अनुभवों के बारे में.

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3 जुलाई 2007. इस्लामाबाद में एक उमस भरा दिन. लाल मस्जिद अभियान के चलते पाकिस्तानी राजधानी का पारा तो कुछ ज़्यादा ही चढ़ा हुआ था. मौक़े पर मौजूद मैं भी डॉयचे वेले उर्दू कार्यक्रम के लिए इस घटनाक्रम पर नज़र रखे हुए था. उग्रवादियों और सुरक्षा बलों के बीच तड़ातड़ गोलियां चल रही थी. कुछ देर बाद ही मेरे फोन की घंटी बजी. इंटरनेशनल कॉल थी. फोन उठाया था दूसरी तरफ़ से आवाज़ आई, हैलो, मैं प्रिया बोल रही हूं. क्या आप शकूर जी हैं. और इस तरह मेरा नाता डॉयचे वेले हिंदी परिवार से जुड़ा.

Arbeiter streichen die Kuppel der Roten Moschee in Islamabad
रंगा जा रहा है लाल मस्जिद कोतस्वीर: AP

पूरे लाल मस्जिद ऑपरेशन के दौरान हिंदी कार्यक्रम के लिए बराबर रिपोर्टिंग की. काम की सराहना हुई तो आगे के लिए भी रास्ता तैयार हुआ. अब तो डॉयचे वेले हिंदी के लिए रिपोर्टिंग करते हुए तक़रीबन दो साल हो गए हैं. हिंदी में काम करने का यह मेरे लिए पहला मौक़ा रहा, इसलिए इन दो सालों में बहुत कुछ सीखा भी. ख़ासकर उर्दू के खांटी शब्दों के लिए हिंदी शब्द जानने को मिले और इसके लिए मैं हिंदी विभाग के सभी साथियों का शुक्रगुज़ार हूं. ख़ासकर हिंदी शब्दों को किस तरह बोलना है और उसका सही सही मतलब क्या है, यह बख़ूबी जानने को मिला.

Asif Ali Zardari trifft Nawaz Sharif in Islamabad, Pakistan
पाकिस्तान में लोकतंत्र की बहालीतस्वीर: AP

इस्लामाबाद से बॉन की दूरी हज़ारों किलोमीटर है, लेकिन जिस तरह डॉयचे वेले आवाज़ के ज़रिए दुनिया भर तक पहुंचता है. वही आवाज़ मेरे और डॉयचे वेले हिंदी के साथियों के बीच रिश्ते को मज़बूत रखती है. मुलाक़ात की जहां तक बात है सिर्फ़ विभाग की प्रमुख प्रिया से मिला हूं. वह भी तब, जब वे इस्लामाबाद आईं. लेकिन बाक़ियों से भी ख़ुद को उतना ही जुड़ा महसूस करता हूं.

रही बात काम की, तो पिछले दो सालों में डॉयचे वेले हिंदी से कई यादें जुड़ी हैं. लेकिन एक बात, जिसका अपना ही मज़ा है, वह यह कि रात के दो से तीन बजे के बीच भी कभी फोन बज उठता है. दूसरी तरफ़ से आवाज़ आती है, ओहो शकूर जी मैंने आपको जगा दिया? ऐसे में यह कहने से सिवा कोई दूसरा चारा नहीं होता, चलें, कोई बात नहीं. और फिर शुरू हो जाता है काम रिपोर्ट बनाने और भेजने का. और शायद यही काम आपके और हमारे लिए ज़रूरी है. चलते रहने के लिए, आगे बढ़ते रहने के लिए.

शकूर रहीम, इस्लामाबाद