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अमेरिका की खुफिया चाल में फंसा बिन लादेन

Priya Esselborn३ मई २०११

अमेरिका को 2010 में ही पता चला गया था कि एबटाबाद के एक तिमंजिले मकान में कुछ गड़बड़ है. फिर अमेरिकी जासूसों ने कई महीनों तक इसकी छानबीन की. धीरे धीरे परतें खुलती गईं और आखिरकार बिन लादेन मारा गया.

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इस घर में छिपा था लादेनतस्वीर: dapd

अमेरिकी अधिकारी अब एबटाबाद ऑपरेशन और उसकी तैयारियों के बारे में कुछ जानकारियां देने लगे हैं. अधिकारियों के मुताबिक उन्हें 100 फीसदी यकीन नहीं था कि एबटाबाद के घर में लादेन ही छिपा है. सूबतों से उपजे शक के बल पर अमेरिकी जासूस आगे बढ़ते गए, आखिरकार संयोग से बिन लादेन हाथ लग ही गया.

बिन लादेन 11 सितंबर 2001 को अमेरिका पर आतंकवादी हमले करने बाद से ही लापता था. वह अफगानिस्तान की तोरा बोरा पहाड़ियों से भाग निकला और इसके बाद कई सालों तक उसका कोई सुराग नहीं मिला. वह नौ साल तक टेलीफोन पर बातचीत करने से बचता रहा.

बीते साल सितंबर में अमेरिकी जासूसों को पता चला कि लादेन कैसे अन्य आतंकवादियों के संपर्क में हैं. न्यू यॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट कहती है कि दो पाकिस्तानी एजेंट अमेरिका के लिए जासूसी कर रहे थे. इन एजेंटों ने पेशावर में लादेन तक चिट्ठी पत्री पहुंचाने वाले एक शख्स की शिनाख्त की. इस व्यक्ति को 'कुरियर' कहा जाता था. कुरियर का पीछा करते हुए अमेरिकी जासूस एबटाबाद तक पहुंचे.

एबटाबाद में वे एक तिमंजिले मकान तक पहुंचे. मकान की सुरक्षा बेहद कड़ी थी. किसी को पता नहीं था कि वहां कौन रहता है. मकान में कोई टेलीफोन या इंटरनेट कनेक्शन नहीं था. लोगों को आना जाना भी कभी कभार होता. कूड़ा भी हमेशा चाहरदीवारियों के अंदर जलाया जाता था ताकि कोई सुराग न छूटे. दिसंबर 2010 तक अमेरिकी जासूसों को अंदाजा हो गया कि इस मकान में कोई 'तुर्रम खां' मौजूद है.

खुफिया अभियान से जुड़े एक अधिकारी ने कहा, ''हमें शक हो गया कि इस मकान में रहने वाला बेहद गुप्त ढंग से अपनी गतिविधियां चला रहा है. उसने अपनी सुरक्षा के लिए जबदस्त तंत्र खड़ा किया था. वह महंगे मकान में रह रहा था लेकिन उसकी आमदनी का जरिया किसी को नहीं पता था. हमें शक हुआ कि यहां कोई ऐसा बड़ा संदिग्ध है जो किसी न किसी तरह बिन लादेन से जुड़ा है. वह बेहद अलग ढंग से जिंदगी जी रहा था.''

इस बीच कुरियर को अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए ने दबोच लिया. सख्ती से पूछताछ पर कुरियर ने कुछ राज उगले. इसी साल जनवरी में अमेरिका का पूरा ध्यान एबटाबाद के मकान पर लग गया. जानकारियां अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा तक पहुंची. ओबामा ने बहुत ही कम अधिकारियों के साथ एक टीम बनाई. ये टीम लगातार आती नई जानकारियों पर गोपनीय ढंग से चर्चा करती रही.

अप्रैल में ही अमेरिका ने एबटाबाद में छिपे संदिग्ध का काम तमाम करने की तैयारी कर ली थी. अमेरिकी राष्ट्रपति के सामने तीन योजनाएं पेश की गईं. पहली: एक खास दस्ते को भेजकर संदिग्ध को पकड़ा या मार दिया जाए, दूसरी: मकान को बम से उड़ा दिया जाए, तीसरी योजना थी कि कुछ वक्त और इतंजार किया जाए. बम हमले में आम नागरिकों के मारे जाने की आशंका थी, लिहाजा इस प्रस्ताव को रद्द कर दिया गया. लादेन के मारने से ठीक तीन दिन पहले ओबामा ने अधिकारियों को बुलाया और कहा कि वो एबटाबाद ऑपरेशन के लिए अनुमति देने को तैयार हैं.

ओबामा की हरी झंडी मिलते ही मौके के इंतजार कर रही अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियां हरकत में आ गईं. रविवार रात एक बजे एबटाबाद के ऊपर अमेरिकी हेलिकॉप्टर पहुंचा. बिन लादेन के गार्डों ने हेलिकॉप्टर पर फायरिंग की. इसके बाद 40 मिनट तक चली कार्रवाई में अमेरिकी कंमाडो टुकड़ी ने बिन लादेन का काम तमाम कर दिया.

शव के अपने साथ ले जाने और उसकी जांच करने के बाद ही पुष्टि हुई कि मारा गया दुनिया का सबसे दुर्दांत आतंकवादी ओसामा बिन लादेन है.

रिपोर्ट: एएफपी/ओ सिंह

संपादन: ए कुमार

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