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परमाणु जवाबदेही बिल पर नया बखेड़ा

२३ अगस्त २०१०

परमाणु जवाबदेही बिल को लेकर केंद्र सरकार एक बार फिर मुश्किल में आ गई है. मुख्य विपक्षी दल बीजेपी और वामपंथी पार्टियों ने बिल में किए गए सरकार के संशोधनों को नकार दिया है. बीजेपी ने इसका समर्थन करने से इनकार कर दिया है.

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तस्वीर: UNI

बिल के विरोधियों का कहना है कि इसके मौजूदा प्रावधानों के हिसाब से हादसा हो जाने पर पीड़ितों को मुआवजा दिला पाना मुश्किल होगा. भारत में अमेरिका की कई बड़ी कंपनियों को परमाणु बिजली क्षेत्र में प्रवेश की इजाजत देने के लिए इस बिल का पास होना जरूरी है. पहले भारतीय जनता पार्टी कुछ संशोधनों की मांग कर रही थी और सरकार ने पिछले हफ्ते बिल में वे बदलाव कर दिए थे. इसके बाद बीजेपी ने बिल का समर्थन करने की बात कही थी, लेकिन अब उसका कहना है कि बिल में किए गए बदलाव संतोषजनक नहीं है.

बीजेपी का कहना है कि बिल के मुताबिक सप्लायर्स को तभी मुआवजा देना होगा जब दुर्घटना में उनकी मंशा साबित होगी. राज्यसभा में पार्टी के उपनेता एसएस आहलुवालिया ने कहा, "उन्होंने मंशा शब्द को जोड़ दिया है. यह तो समस्या है. आप कैसे साबित करेंगे कि दुर्घटना मंशा की वजह से हुई. यह प्रावधान सही नहीं है."

इस मुद्दे पर वाम दलों की राय के बारे में बताते हुए सीपीआई के राष्ट्रीय सचिव डी राजा ने कहा, "मुझे नहीं लगता कि सरकार ने जो बदलाव किए हैं, उनसे हम सहमत हो सकते हैं. यह जायज और सही तर्क नहीं है. आपदा तो आपदा है. कौन मानेगा कि ऐसा काम जानबूझकर किया जा सकता है. मैं तो कहता हूं कि यह एकदम वाहियात तर्क है. कोई सप्लायर इसमें अपनी मंशा स्वीकार नहीं करेगा."

सरकार को बिल पास कराने के लिए बीजेपी के समर्थन की जरूरत है क्योंकि सरकार के पास सैद्धांतिक रूप से भले ही बहुमत हो, लेकिन बीजेपी इसे राज्यसभा में रोकने की ताकत रखती है.

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह खुद इस बिल को पास कराने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं. इस तरह की खबरें आई हैं कि प्रधानमंत्री कार्यालय के एक राज्य मंत्री ने विपक्षी नेताओं से बातचीत की है. उधर कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी का कहना है कि सरकार विचार विमर्श के लिए तैयार है. उन्होंने कहा, "चूंकि आम राय नहीं बन रही है, इसलिए सरकार विचार विमर्श के लिए तैयार है और हम फिर से उन्हें भरोसा दिलाने की कोशिश करेंगे."

रिपोर्टः एजेंसियां/वी कुमार

संपादनः ए कुमार

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