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पंडिताई में महिलाओं ने दी पुरुषों को चुनौती

२० मई २०१०

हिंदू धार्मिक परंपरा में हर महत्वपूर्ण कार्य पूजा से ही आरंभ होता है और उसी से संपन्न. सदियों से पुरुष पंडित ही धार्मिक अनुष्ठानों को कराते रहे हैं लेकिन अब परंपरा को तोड़ महिला पंडित भी इस क्षेत्र में क़दम बढ़ा रही हैं.

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पूजा संपन्न करातीं चित्रा लेलेतस्वीर: Sonia Phalnikar

पुणे की प्रदन्या पाटिल 11 वीं मंजिल पर एक आलीशान फ्लैट में रहतीं हैं. उन्होंने अपने लिविंग रूम में देवी देवाताओं की मूर्तियां सजा रखी हैं. अगरबत्तियां जल रहीं हैं और उनकी सुगंध पूरे घर में फैली है. प्रदन्या गृह प्रवेश पूजा की तैयारी में लगी हैं.

हम किसी से कम नहीं

35 साल की प्रदन्या ने परंपरा को तोड़ते हुए पूजा के लिए एक महिला पंडित को घर बुलाया. वह कहती हैं कि महिला पंडित पुरूष पंडित से बेहतर हैं. उनके मुताबिक, "मेरी भाभी के घर में हाल ही में गृह प्रवेश की पूजा की गई. पंडित को 5 घंटे लगे इसे पूरा करने में. मैंने देखा कि महिला पंडित पूजा को कहीं जल्दी खत्म कर देती हैं, कभी तो बस एक घंटे में ही. मेरे सभी रिश्तेदार, यहां तक कि मेरे पिताजी भी अब सिर्फ महिला पंडितों को घर बुलाते हैं. इसके अलावा मैंने अकसर यह महसूस किया है कि महिला पंडित मंत्र और श्लोकों का मतलब समझाती हैं. वह इमानदारी से अपना काम करतीं हैं."

Chitra Lele aus Pune, Indien
हिंदुओं के जीवन के हर अहम कार्य से जुड़ी है पूजातस्वीर: Sonia Phalnikar

थोडी देर बाद चित्रा लेले भी पूजा के वक्त प्रदन्या को मंत्र और रीति रिवाज़ों का मतलब बता रही हैं. 41 साल की चित्रा लेले ने रंगीन साड़ी पहन रखी है. सफेद धोती पहन कर पूजा करने वाले आम पुरूष पंडितों से चित्रा बहुत अलग दिख रहीं हैं. चित्रा शादीशुदा हैं और उनकी एक बेटी हैं. वह बताती हैं कि संस्कृत और हिंदी में रुचि होने के कारण उन्हें पंडित का काम सीखने की प्रेरणा मिली. चित्रा बतातीं हैं, "आजकल की युवा पीढी बहुत ही व्यस्त है. वे बहुत सारा वक्त कंप्यूटर के सामने बिताते हैं. ऐसे में वे किसी धार्मिक अनुष्ठान में 5 घंटे नहीं बैठना चाहते हैं. हमारे तरीके से हम पूजा के ज़रूरी हिस्सों को उन्हें एक घंटे में समझा देते हैं. हम उन्हें पूजा में शामिल भी करते हैं, यह उन्हें बहुत पसंद आता है और वह इसमें हिस्सा भी लेते हैं."

परंपरा को चुनौती

ज़ाहिर सी बात है कि चित्रा लेले जैसी महिलाएं पंडितों को लेकर परंपरागत सोच को चुनौती दे रही हैं. पुणे के ध्यानप्रबोधिनी केंद्र में चित्रा ने प्रशिक्षण पाया. इस केंद्र का भवन शहर के पुराने हिस्से में है. इस वक्त वहां 20 से भी ज़्यादा महिलाएं एक वर्षीय कोर्स में भाग ले रहीं हैं. इनमें सभी जातियों की महिलाएं हैं. ज्यादातर की उम्र 40 से 65 के बीच है. आर्या जोशी इन महिलाओं को पढ़ाती हैं. वह कहती हैं, "मुझे इस बात की बहुत खुशी होती है कि जिन महिलाओं ने हमसे प्रशिक्षण लिया है वे बहार जाकर अपना काम आत्मविश्वास से करती हैं. जो वे करती हैं वह मेरे हिसाब से पुरानी परंपराओं और आधुनिकता का मेलमिलाप है."

आर्या जोशी इस बात पर ज़ोर देती हैं कि महिलाएं सिर्फ घरों में पूजा संपन्न करतीं हैं, मंदिरों में नहीं. अंतिम संस्कार भी महिला पंडित नहीं कराती हैं. अब तक उन्हें सिर्फ बडे शहरों में खासकर मुंबई या पुणे में स्वीकार किया गया है. ग्रामीण इलाकों में उन्हें मान्यता मिलना अब तक संभव नहीं लगता. आर्या जोशी का मानना है कि हिंदू धर्म में महिलाओँ को हमेशा से पूजा संपन्न करने का अधिकार रहा है. प्राचीन धार्मिक पांडुलिपियों में भी इसका उल्लेख मिलता है. लेकिन फिर पुरूषों ने हस्तक्षेप करने की कोशिश की और कहा कि पंडित पुरूष ही हो सकते हैं और उनका संबंध भी एक विशेष जाति से होना चाहिए. तब से यही परंपरा चलती आ रही है. वह कहती हैं, "लोग महिला पंडितों की कल्पना नहीं कर सकते हैं. वे नहीं समझ पाते कि यह एक पुरानी परंपरा है जो 5000 साल से चली आ रही है. यह रूढ़ीवादी सोच है. करीब एक चौथाई लोग महिला पंडितों को कभी स्वीकार नहीं करेंगे. लेकिन मुझे लगता है कि यह सब समय के साथ बदलता जाएगा, इसी का अब इंतज़ार है."

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वक्त के साथ हाईटैक होते पुजारीतस्वीर: AP

लेकिन पुणे में आम लोगों से पूछा जाए कि उनकी महिला पंडितों को लेकर क्या राय है, तो मिली जुली राय सामने आती है. एक पुरूष का कहना है, " मुझे नहीं लगता कि महिलाओं को पूजा कराने का अधिकार मिलना चाहिए. यह अधिकार सिर्फ पुरूषों का होना चाहिए क्योंकि यह हमारी संस्कृति में कहा गया है. हमेशा से ऐसा होता आया है." वहीं एक अन्य व्यक्ति की राय है, "मुझे कोई समस्या नहीं है अगर महिला पंडित हो. लेकिन उन्हें अपनी शारिरिक बाधाओं के बारे में सोचना है. मासिक धर्म में उन्हें कतई कोई पूजा नहीं करानी चाहिए, क्योंकि वह पवित्र नहीं हैं." कुछ लोगों को इस बात पर खुशी है कि महिलाएं ऐसा काम कर रहीं हैं.

विरोध का सामना

आर्या जोशी बताती है कि उन्हें सबसे ज़्यादा का सामना विरोध पुरूष पंडितों की ओर ही करना पड़ता है. उनके शब्दों में, "बात यह है कि जो पंडित परंपरागत रूप से अपना काम करते आए हैं, वे डरे हुए हैं. उन्हें लगता है कि उनकी आमदनी कम हो जाएगी. पूजा कराना पुरूष प्रधान काम है और इसलिए वे महिला पंडितों की सख्त आलोचना करते हैं."

Hindu Priester bei Puja Ritual
सदियों से पुरूष ही कराते रहे हैं पूजा और अनुष्ठानतस्वीर: AP

आलोचना आनंद पंधारपुरे भी करते हैं. 40 साल के आनंद 20 साल से पंडिताई कर रहे हैं और छोटी उम्र से ही पिता ने उन्हें यह काम सिखाना शुरू कर दिया था. उनके मुताबिक पंडित बनने के लिए 7 - 8 साल तक विशेष विद्यालयों में धार्मिक पढाई करनी चाहिए. वह कहते हैं, "महिलाएं हफ्ते में दो बार क्लास में पढाई करने के लिए जाती हैं. लेकिन इसके साथ वह हिंदू धर्म की पृष्टभूमि नहीं समझ सकती हैं और न ही उनका ज्ञान बहुत गहरा होगा. जिस तरह से वे पूजा कराती हैं, मै तो इसे मनोरंजन मानूंगा. इनमें कोई धार्मिक गंभीरता नहीं हैं. एक तरह यह लोगों को बुद्धू बनाने वाली बात है. यह हमारे पंडित होने का आपमान है.

आनंद पंधारपुरे का यह भी मानना है कि पंडितों को महिला पंडितों से डरने की कोई ज़रूरत नहीं है. वह कहते हैं, "महिलाएं ज़्यादातर 40 साल की उम्र के बाद ही पंडित बनती हैं. खासकर जब उनके बच्चे बड़े हो जाते हैं और जब उन्हें कोई और काम नहीं रह जाता. मुझे नहीं लगता है कि महिलाओं को ऐसा करना चाहिए क्योंकि पंडित का काम कोई पार्ट टाइम काम या कोई शौक नहीं है. इसके साथ एक बहुत ही बड़ी ज़िम्मेदारी भी जुडी है. इसलिए हम पुरूष पंडितों के लिए यह जीवनभर सीखने की प्रक्रिया है. सच कहूं, मै तो महिलाओं के पंडित बनने के मुद्दे को ज्यादा गंभीरता से लेता ही नहीं हूं. क्योंकि उनकी संख्या बहुत ही कम है."

रिपोर्टः सोनिया फाल्नीकर/प्रिया एसेलबोर्न

संपादनः ए कुमार