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महिला आरक्षण बिल पर बहस जारी

९ मार्च २०१०

सांसदों को सस्पेंड किए जाने और उन्हें ज़बरदस्ती राज्यसभा से निकाले जाने के बाद भारत में महिला आरक्षण बिल पर बहस शुरू हो गई है. लेकिन आरजेडी और समाजवादी पार्टी के बाद अब सरकार की सहयोगी ममता बनर्जी भी नाराज़ हो गई हैं.

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तिहाई हक़ की लड़ाईतस्वीर: AP

ममता बनर्जी महिला आरक्षण विधेयक का विरोध नहीं कर रही हैं, बल्कि उनका कहना है कि जिस तरह से इस विधेयक को सदन में पेश किया गया, वह उसका विरोध करती हैं. ममता ने यहां तक धमकी दे दी है कि उनकी पार्टी यानी तृणमूल कांग्रेस राज्यसभा में विधेयक के लिए वोटिंग नहीं करेगी.

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संसद में कोहरामतस्वीर: AP

लगभग 14 साल तक ठंडे बस्ते में पड़े रहने के बाद मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार ने सोमवार को संसदीय प्रणाली में महिलाओं के लिए आरक्षण का विधेयक पेश किया. लेकिन तभी सरकार की सहयोगी पार्टियों राष्ट्रीय जनता दल और समाजवादी पार्टी ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया और राज्यसभा में हंगामा हो गया. दोनों पार्टियों ने यूपीए से अपना समर्थन भी वापस ले लिया. हालांकि सरकार पर इसका कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा.

भारी शोरगुल के बाद सोमवार को संसद की कार्यवाही स्थगित कर देनी पड़ी. मंगलवार को कार्यवाही शुरू होते ही संसद के अंदर अमर्यादित ढंग से व्यवहार करने वाले सात सांसदों को सस्पेंड कर दिया गया और जब वे सदन से बाहर जाने के लिए राज़ी नहीं हुए, तो मार्शलों के ज़रिए उन्हें निकाल बाहर किया गया. ज़्यादातर आरजेडी और समाजवादी पार्टी से जुड़े ये सांसद अब बजट सत्र के बचे हुए दिनों में संसद की कार्यवाही में हिस्सा नहीं ले पाएंगे.

कुछ राजनीतिक पार्टियों ने इसका भी विरोध किया है और उनका कहना है कि सांसदों को विरोध करने का हक़ है और उनके ख़िलाफ़ ऐसी कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए. हालांकि राज्यसभा के सभापति और भारत के उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी का कहना है कि सदन के अंदर मर्यादा का हनन बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. कुछ सांसदों ने सोमवार को अंसारी के हाथ से कागज़ छीनने की कोशिश की थी, जबकि कुछ सांसदों ने महिला आरक्षण बिल की कॉपी फाड़ कर अंसारी की तरफ़ उछाल दी थी.

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आंदोलन पर ऊतारूतस्वीर: UNI

मंगलवार को भारी गहमा गहमी के बीच बिना बहस के विधेयक पर वोटिंग की प्रक्रिया शुरू हो गई, जिस पर बीजेपी ने गहरी आपत्ति जताई और पार्टी का कहना है कि बिना बहस के वोटिंग नहीं होनी चाहिए. कांग्रेस की प्रखर विरोधी पार्टी बीजेपी महिला आरक्षण के मौजूदा स्वरूप पर ही इसका साथ देने को तैयार है लेकिन सदन के अंदर अपनी बात रखना चाहती है.

विधेयक के मुताबिक़ भारत की संसदीय प्रणाली में महिलाओं को 33 फ़ीसदी रिज़र्वेशन देने की बात है.

इस विधेयक के पास होने के बाद भारत में ऐसा क़ानून बनेगा, जिसके तहत आने वाले 15 सालों में बारी बारी से सभी सीटों पर महिलाओं को आरक्षण दिया जाएगा. यानी अगर लोकसभा चुनाव की बात की जाए, तो आने वाले चुनाव में एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए पक्की की जाएंगी. उसके बाद के चुनाव में दूसरी एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी और पहली सीटें आरक्षण के दायरे से निकल जाएंगी. इस तरह तीन बार में भारत की सभी सीटों का प्रतिनिधित्व महिलाएं कर पाएंगी.

लेकिन क़ानून बनने के रास्ते में अभी काफ़ी अड़चनें आ सकती हैं. राज्यसभा से पास होने के बाद महिला आरक्षण बिल लोकसभा में भेजा जाएगा. जहां समाजवादी पार्टी और आरजेडी के लगभग 30 सांसद हैं और जो बिल का विरोध कर रहे हैं. ममता बनर्जी भी अगर बिल के विरोध पर उतारू हो गईं तो सरकार के लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है. लोकसभा में अगर बिल पास हो भी जाए, तो इसे राज्य की विधानसभाओं से भी रज़ामंदी चाहिए और देश भर में इस पर एकदम से सहमति बनना आसान नहीं होगा.

भारत की आधी आबादी 63 साल से अपने हक़ के लिए लड़ रही है. न्याय तो तब होता, जब उन्हें आधा मिलता, वे तो एक तिहाई ही मांग रही हैं. लेकिन नेताओं को यह भी मंज़ूर नहीं. ऐसे में महिला संगठनों ने भी अपने तरह के रण का मन बना लिया है.

रिपोर्टः एजेंसियां/ए जमाल

संपादनः ए कुमार