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दिमाग़ के लिए भी पेसमेकर

७ मार्च २०१०

जिनका दिल कमज़ोर होता है, अनियमित धड़कता है या शरीर में ख़ून को ठीक से पंप नहीं कर पाता, उन्हें पेसमेकर लगाया जाता है. एक ऐसा ही पेसमेकर उन लोगों के दिमाग़ के लिए बना है, जिनके हाथ पैर ठीक से काम नहीं करते.

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तस्वीर: AP

सिर से कोई नौ सेंटीमीटर की गहराई पर हमारे मस्तिष्क में एक बहुत ही छोटी सी जगह है, जिसे वैज्ञानिक न्यूक्लियस पेंडुकुलो पोंटीयुस, संक्षेप में पीपीएन कहते हैं. यह जगह मस्तिष्क का वह केंद्र है जिस की हाथ पैर चलाने जैसे हमारे अंग संचालनों में बड़ी निर्णायक भूमिका होती है. इस केंद्र में किसी गड़बड़ी का मतलब है कि हम अपने हाथ पैर ठीक से इस्तेमाल नहीं कर सकते या हाथ पैर अनियंत्रित हो जाने के दौरे पड़ने लगते हैं.

Herzschrittmacher
तस्वीर: picture-alliance/ dpa

वैज्ञानिक अभी नहीं जानते कि पीपीएन हमारे अंग संचालन को कैसे नियंत्रित करता है और उस में गड़बड़ी कैसे आ जाती है. वे इतना ही जानते हैं कि गड़बड़ी आ जाने पर विद्युत उद्दीपन द्वारा पीपीएन को सकारात्मक ढंग से प्रभावित किया जा सकता है. हनोवर मेडिकल कॉलेज में न्यूरोसर्जरी विभाग के निदेशक प्रो. योआख़िम क्राउस बताते हैं कि इसके लिए रोगी के पीपीएन में एक इलेक्ट्रोड उतार कर उसे हर दो सेकेंड पर बिजली के हल्के झटके दिये जाते हैं:

"ऐसा लगता है कि सामान्य से हट कर किसी दूसरी फ्रीक्वेंसी वाली इस विद्युत उत्तेजना से न्यूक्लियस थलैमिकुस को कुछ इस तरह का संकेत मिलता है कि वह सही ढंग से काम करने लगता है."

दिमाग़ में इलेक्ट्रोड

आम तौर पर मस्तिष्क की गहराइयों को उत्प्रेरित करने के लिए इस से छह गुना ऊंची फ्रीक्वेंसिंयों का उपयोग किया जाता है और इलेक्ट्रोड को इतनी अधिक गहराई तक उतारा भी नहीं जाता. उदाहरण के लिए, हाथ कांपने की पार्किन्संस बीमारी के समय इलेक्ट्रोड को क़रीब छह सेंटीमीटर की गहराई तक ही मस्तिष्क में धंसाया जाता है. इलेक्ट्रोड को मस्तिष्क में धंसाते समय डॉक्टर हमेशा मस्तिष्क के विद्युततरंग लेखी ईईजी को देखते रहते हैं. ईईजी का ग्राफ़ मस्तिष्क के हर विशिष्ट हिस्से में अलग अलग ढंग का होता है. ग्राफ़ की बनावट से जाना जा सकता है कि इलेक्ट्रोड ठीक किस जगह पर पहुंचा हैः

" यह कुछ उसी तरह है कि यदि आप यूरोप में स्वीडन से स्पेन जा रहे हैं तो रास्ते में अलग अलग देशों से गुज़रते हैं, जहां अलग अलग भाषाएं बोली जाती हैं."

2000 Jahre alte Überreste eines Gehirns_Entdeckung in England
तस्वीर: AP

अचूक बारीक़ी भरा काम

दिमाग़ में इलेक्ट्रोड धंसाते समय मरीज़ पूरी तरह होश में रहता है. उसे सिर की केवल उन जगहों पर ''लोकल एनेस्थिज़िया'' का इंजेक्शन दिया जाता है, जहां से होकर इलेक्ट्रोड को मस्तिष्क में उतारा जाता है. मस्तिष्क स्वयं कोई दर्द महसूस नहीं करता. डॉक्टर या सर्जन मरीज़ के साथ बातें करते हुए जान सकता है कि इलेक्ट्रोड सही जगह पर पहुंचा है या नहीं. इलेक्ट्रोड को जहां पहुंचना चाहिये, वह लक्ष्य एक मिलीमीटर से भी छोटा होता है, इसलिए बहुत ही सावधानी और एकाग्रता की ज़रूरत पड़ती है.

डॉक्टर पहले कुछ दिनों तक देखते हैं कि इलेक्ट्रोड सही बिंदु पर पहुंचा है या नहीं और वांछित ढंग से काम कर रहा है या नहीं. उस के बाद इलेक्ट्रोड में हर दो सेकंड पर बिजली की क्षीण तरंगे भेजने वाले पेसमेकर को, जो माचिस की डिबिया जितना बड़ा होता है, कंधे के पास फ़िक्स कर देते हैं. उस के तार त्वचा के नीचे छिपा दिये जाते हैं. इस ब्रेन पेसमेकर, यानी मस्तिष्क गतिदायी से रोगी हमेशा के लिए ठीक नहीं होता. "यह लक्षण का उपचार है न कि बीमारी दूर करने का उपचार. पेसमेकर हटाते ही पुरानी समस्याएं लौट आती हैं."

जब कोई विकल्प न बचा हो

तब भी यह ऑपरेशन उन लोगों लिए एक नए जीवन के समान हो सकता है, जिनके लिए और कोई रास्ता नहीं बचा था. यानी, जिन की समस्या किसी दवा इत्यादि से हल नहीं हो रही थी. अंग संचालन में असमर्थता मूल रूप से पार्किन्संस रोग नहीं है, पर उससे बहुत दूर भी नहीं है, जैसा प्रो. क्राउस बताते हैं. "कह सकते हैं पार्किन्संस रोग से पीड़ित हर पांचवां रोगी अंग संचालन असमर्थता का उम्मीदवार है और हर पचासवां इस तरह के पेसमेकर ऑपरेशन का."

अंग संचालन में बाधा दूर करने के लिए मस्तिष्क की गहराई में जा कर उत्तेजना देने का यह पेसमेकर अभी बहुत नया है और केवल गिने चुने लोगों पर ही आज़माया गया है. अनुभव यहां भी यही दिखाता है कि जितना पहले रोग पहचाना जाए और मस्तिष्क पेसमेकर लगाया जा सके उतना ही ज़्यादा वह प्रभावकारी सिद्ध होता है.

रिपोर्ट: राम यादव

संपादन: एस गौड़