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25 साल बाद भी इंसाफ़ का इंतज़ार

३ दिसम्बर २००९

यूनियन कार्बाइड कंपनी के प्रमुख वॉरेन एंडरसन को इस हादसे के तत्काल बाद गिरफ़्तार कर लिया गया था लेकिन ज़मानत मिलने के बाद ही एंडरसन ने देश छोड़ दिया और तब से वह क़ानून की पहुंच से दूर है.

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यूनियन कार्बाइड फ़ैक्ट्रीतस्वीर: AP

नवंबर 2002 में भारत ने स्पष्ट किया था कि यूनियन कार्बाइड के प्रमुख वारेन एंडरसन के प्रत्यर्पण की मांग की जा रही है. एंडरसन पर आरोप है कि उन्होंने ख़र्च में कटौती के लिए सुरक्षा मानकों के साथ समझौता किया. एंडरसन पर लोगों की मौत का ज़िम्मेदार होने का भी आरोप है. सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि एंडरसन के ख़िलाफ़ ग़ैर ज़मानती वारंट 1992 में लागू किया गया था लेकिन भारत सरकार ने प्रत्यर्पण की मांग करने में 11 साल लगा दिए.

Flash-Galerie Giftgaskatastrophe Bhopal
तस्वीर: AP

1999 में एक स्वंयसेवी संगठन ने अमेरिका में एक मुक़दमा किया था जिसमें दलील दी गई थी कि यूनियन कार्बाइड ने अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों और मानवाधिकारों का उल्लंघन किया. अमेरिकी कंपनी यूनियन कार्बाइड का दावा रहा है कि उस पर भारत के क़ानून लागू नहीं होते.

इससे परेशान और हताश हो कर पीड़ितों ने अमेरिका में मुक़दमा किया था लेकिन उससे भी अभी कुछ नतीजा नहीं निकला है. 1 दिसम्बर 1987 से अभियोजन पक्ष 178 ग़वाहों को अदालत में पेश कर चुका है जबकि बचाव पक्ष की ओर से 4 लोगों ने ग़वाही दे चुके है.

1989 में यूनियन कार्बाइड ने भारत सरकार को 47 करोड़ डॉलर का मुआवज़ा देना तय किया था लेकिन उसे त्रासदी की तुलना में नाकाफ़ी क़रार दिया गया. सरकार ने उस समय इस हादसे से महज़ 1 लाख लोगो को ही प्रभावित माना था जिसके विरोध में प्रदर्शन भी हुए थे.

Flash-Galerie Giftgaskatastrophe Bhopal
तस्वीर: AP

गैस त्रासदी के पीड़ितों की संख्या लगभग 5 लाख मानी जाती है लेकिन सभी को मुआवज़ा नहीं मिला है और जिन्हें मिला है उसे पीड़ित बेहद कम मानते हैं.

अमेरिका और भोपाल में यूनियन कार्बाइड के ख़िलाफ़ मुक़दमे चल रहे हैं इस कंपनी को अब डाओ कंपनी ख़रीद चुकी है और डाओ ने इस हादसे से अपना पल्ला झाड़ लिया है. भोपाल गैस कांड के 25 साल बाद भी हज़ारों पीड़ित न्याय की तलाश में एक लंबी राह तय कर चुके है और क़ानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं. पिछले साल गैस पीड़ितों ने 800 किलोमीटर की यात्रा कर प्रधानमंत्री से मुलाक़ात की थी.

मौत को बेहद नज़दीक से देखने वाले कई लोग इस दुनिया से रुख़सत हो चुके हैं लेकिन न्याय की उनकी लड़ाई को अगली पीढ़ी ने अपना लक्ष्य बना लिया है. इंसाफ़ का भले ही उनको इंतज़ार हो लेकिन उनके जज़्बे में कोई कमी नहीं दिखती है.

रिपोर्ट: एजेंसियां/एस गौड़

संपादन: ए कुमार