क्या हुआ था उस रात भोपाल में
३ दिसम्बर २००९प्लांट से ज़हरीली गैस का रिसाव शुरू होता है. मिथाइल आइसोसायनाएट गैस फ़ैक्ट्री से होते हुए 9 लाख की आबादी वाले भोपाल शहर पर अपना कहर बरपाना शुरू करती है. सैकडों लोग तो सीधे नींद के आगोश से मौत के आगोश में समा जाते हैं. लोग हड़बड़ा कर नींद से उठते हैं तो उन्हें सांस लेने में दिक्कत और आंखों में जलन महसूस होने लगती है.
पूरे शहर में हड़कंप मच जाता है लोग सुरक्षित स्थान और साफ़ हवा की तलाश में भागने लगते हैं. लेकिन ज़हरीली गैस के फैलने की रफ़्तार ज़्यादा तेज़ साबित होती है. इंसान ही नहीं बल्कि परिंदे और जानवर भी काल का ग्रास बन जाते हैं.
सुबह होने पर इस हादसे की भीषणता का एहसास होता है जब कई स्थानों पर लोगों की लाशें बिखरी नज़र आती हैं. शहर के मुर्दाघर भर जाते हैं पर लाशों की संख्या बढ़ती चली जाती है. भोपाल के अस्पताल भी इतने बड़े पैमाने पर हुए इस हादसे से निपटने को तैयार नहीं दिखते.
गैस के रिसाव के कुछ ही घंटों के भीतर 3,500 लोगों की मौत हो गई थी. इसके बाद के हफ़्तों में मृतकों का आंकड़ा बढ़ कर 15 हज़ार से ज़्यादा हो गया. हालांकि कई ग़ैर सरकारी संगठन इस त्रासदी में मारे गए लोगों की संख्या 25 हज़ार से ज़्यादा बताते हैं. भोपाल गैस त्रासदी को अब तक की सबसे बुरी औद्योगिक दुर्घटनाओं में माना जाता है.
माना जाता है कि 5 लाख से ज़्यादा लोगों पर इस हादसे के स्वास्थ्य संबंधी दुष्प्रभाव पड़े और हादसे के सालों बाद पैदा हुए बच्चे कई बीमारियों से ग्रस्त नज़र आते हैं. यूनियन कार्बाइड प्लांट से 30 से 40 टन के बीच ज़हरीली गैस का रिसाव हुआ था.
भोपाल गैस त्रासदी से सबसे ज़्यादा प्रभावित ग़रीब परिवारों के लोग थे जो झुग्गियों में रहते थे. इस हादसे में ज़िंदा बचे लोग तो उस रात को शायद कभी नहीं भूल पाएंगे लेकिन हादसे के बाद पैदा हुई पीढ़ी भी उस रात को याद कर सिहर उठती है.
रिपोर्ट: एस गौड़
संपादन: ए कुमार