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मरम्मत के बाद शुरू महाप्रयोग

२१ नवम्बर २००९

प्रोटोन की तेज़ बौछारें ज़मीन के भीतर एक गोलाकार महानली में टकराने के लिए छोड़ दी गई है. प्रयोग के ज़रिए ब्रह्मांड के अस्तित्व में आने का रहस्य समझने की कोशिश की जाएगी. प्रयोग लार्ज हेड्रोन कोलाइडर के ज़रिए हो रहा है.

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प्रोटोनों की टक्करतस्वीर: picture alliance/dpa

एक साल से ज़्यादा समय की रुकावट के बाद ब्रह्मांड की उत्पत्ति से जुड़े बिग बैंग यानी महाविस्फोट के सिद्धांत को समझने का प्रयोग फिर शुरू हो गया है. फ्रांस और स्विटजरलैंड की सीमा पर बनी लैबोरेटरी में एटमी रिसर्च के यूरोपीय संगठन, सर्न की देख रेख में ये प्रयोग किया जा रहा है.

लार्ज हेड्रोन कोलाइडर यानी एलएचसी नाम के इस प्रयोग के लिए ज़मीन के भीतर 27 किलोमीटर लंबी गोलाकार सुरंग बनाई गई है. इसी सुरंग में विपरीत दिशाओं से एक के बाद एक, प्रोटोन की तेज़ बौछारें की जाएंगीं और फिर उनके टकराने के नतीजों का अध्ययन किया जाएगा.

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2008 में ठप हो गई थी महामशीनतस्वीर: AP

सर्न के प्रवक्ता जेम्स गिलीज़ ने बताया कि सब एटमिक कणों यानी प्रोटोन को सर्किट में डाल दिया गया है. ये ज़मीन के भीतर 27 किलोमीटर लंबी सुरंग सरीखी मशीन है और इसी में लार्ज हेड्रोन कोलाइडर है.वैज्ञानिकों के मुताबिक कोलाइडर अपना काम बख़ूबी कर रहा है.

दस सितंबर 2008 को ये प्रयोग शुरू होना था लेकिन तकनीकी ख़राबी की वजह से इसे रद्द करना पड़ा. दुनिया भर में इस प्रयोग को लेकर कई तरह की चर्चाएं और अटकलें थीं. वैज्ञानिकों ने इसे एक अभूतपूर्व कोशिश बताया था. और उन आशंकाओं का खंडन किया था जो उस समय दुनिया में कई जगह फैल गई थीं कि इस महाप्रयोग से दुनिया का अस्तित्व ख़तरे में पड़ जाएगा.

Quark und Physik
बिगबैंग सिद्धांत का ग्राफ़िक अंकनतस्वीर: AP

बौछारों की पहली टकराहट का शुरुआती नतीजा एक सप्ताह बाद ही मिल पाएगा. दुनिया के इस सबसे बड़े पार्टिकल कोलाइडर को बनाने में 20 साल लगे थे और इसमें क़रीब पांच अरब डॉलर की खपत आई थी. और जब पिछले साल शुरू होते ही ये ठप हो गया तो इस ख़राबी को ठीक करने में ही 40 लाख डॉलर खर्च करने पड़े थे.

वैज्ञानिक, इस प्रयोग के ज़रिए खगोल विज्ञान के उस सर्वमान्य सिद्धांत को समझना चाहते हैं जिसके तहत बताया जाता है कि कणों के महा विस्फोट यानी बिगबैंग से ही ब्रह्मांड अस्तित्व में आया था.वैज्ञानिक उस दुर्लभ कण की तलाश भी करना चाहते हैं जिसका नाम है हिग्स बोसोन, जिसके अस्तित्व को लेकर भी अलग अलग राय हैं कि वो है भी या नहीं.

रिपोर्टः एजेंसियां/एस जोशी

संपादनः ओ सिंह