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प्रभाष जोशी नहीं रहे

शिवप्रसाद जोशी, (संपादन: उज्ज्वल भट्टाचार्य)५ नवम्बर २००९

हिंदी के वरिष्ठ पत्रकार प्रभाष जोशी का निधन हो गया है. दिल्ली में गुरुवार रात उन्हें दिल का दौरा पड़ा. 73 साल के प्रभाष जोशी हमेशा अपनी लेखनी और बेबाकी के लिए मशहूर रहे.

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तस्वीर: AP

यह वर्ष एक के बाद एक बड़ी स्तब्धकारी सूचनाएं देता रहा. और साल जाते जाते जैसे एक इम्तहान भारत की पत्रकारिता के लिए भी था. हिंदी पत्रकारिता के शिखर पुरुष प्रभाष जोशी नहीं रहे.

73 साल के प्रभाष जोशी ऐसे समय में लगातार सक्रिय बुज़ुर्ग उपस्थिति थे जब चारों और एक से एक वितंडा और कोहराम का माहौल था. प्रभाष अपनी तोड़ तोड़ कर कही हुई ज़बान में, हर शब्द को उसकी ताक़त देने की ज़बान में बोलते थे और अपनी बात को सही साबित करने की कोशिश करते थे.

हिंदी पत्रकारिता की मुख्यधारा में प्रभाषजी थे जिन्होंने 1992 में बाबरी मस्जिद गिराए जाने की घटना पर एक स्टैंड लिया था और आरएसएसस और बीजेपी के सामने कई करारे सवाल खड़े किए गए थे. बाबरी मस्जिद के मुद्दे पर प्रभाषजी इतने सख्त और कड़े तेवर के साथ अपने जनसत्ता अख़बार को लेकर आए थे कि सारी दुनिया चौंक गई थी.

प्रभाषजी ने पत्रकारिता के मूल्यों के साथ कभी समझौता नहीं किया. नई दुनिया से अपने पत्रकारिता करियर की शुरुआत करने वाले प्रभाष ने गोयनका परिवार के इंडियन एक्सप्रेस समूह में नौकरी करते हुए कई सारे मुद्दे ऐसे उठाए कि पत्रकारिता में नई धारा बन गई.

और कहते हैं कि जब उन्होंने अंतिम सांस ली तो वो भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच हैदराबाद का वनडे मैच देख रहे थे. जिसमें भारत तीन रन से हार गया. क्या प्रभाषजी उस हार के सदमे को न सह पाए. ऐसे न जाने कितने मैच प्रभाषजी ने देखे थे और उनकी कवरेज की थी.

प्रभाषजी के जीवन में अगर इमरजेंसी जैसे दौर भी थे और उससे पहले इंदिरा गांधी की विजय का दौर और उसकी तमाम अच्छाइयां और कड़े अनुभव. प्रभाषजी ही थे जिनकी अगुवाई में जब जनसत्ता में देवराला का सती कांड छपा तो लोग भौंचक्के रह गए. प्रभाष जोशी की आलोचना हुई कि वो कैसे सती प्रथा के समर्थक हो सकते हैं.

लेकिन अपने गांधीवादी मूल्यों के बीच अपने ही विचारों की द्वंद्वात्मकता से जूझते प्रभाषजी न 1992 में बाबरी विध्वंस पर जे रुख़ अपनाया , वह हिंदी ही नहीं समूची भारतीय पत्रकारिता में एक अल्लंघनीय मिसाल बन गया. प्रभाषजी ने मस्जिद ढहाने वालों से ऐसे सवाल पूछे कि वे आज तक लाजवाब हैं. और जनसत्ता की कवरेज ने दुनिया के सामने एक बड़ी हक़ीक़त रख दी.

प्रभाषजी ने एक शानदार टीम बनाई. जनसत्ता के संपादक पद से लंबे समय बाद छुट्टी ली लेकिन कागद कारे कॉलम लिखते रहे. और ये न सिर्फ़ पत्रकारिता बल्कि हिंदी लेखन जगत के लिए एक दस्तावेज़ सरीखा़ बन गया. प्रभाष जोशी ने क्रिकेट पर कई कागद कारे किए. क्रिकेट की उनकी जानकारी और उनका शौक इतना उद्दाम था कि मुख्यधारा के खेल समाचारों में अक्सर क्रिकेट की बात होती तो प्रभाषजी को ज़रूर याद किया जाता. सचिन तेंदुलकर के बारे में वो बहुत मिठास और अपनत्व से लिखते थे और सचिन के बारे में वो बहुत पहले लिख चुके थे कि ये लड़का अद्भुत करेगा. 17 हज़ार रन वनडे में बनाकर जब सचिन आउट हुए और साढ़े तीन सौ इक्यावन रन से तीन रन कम पर टीम इंडिया आउट हुई तो सोचिए हिंदी में क्रिकेट के सबसे बड़े शौकीन प्रभाष जोशी पर कैसी बीती होगी. और ये गुरुवार पांच तारीख़ नवंबर 2009 की बात है. यानी कल की ही बात....