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यूरोप में बढ़ती भारतीय कला की पूछ

८ अक्टूबर २००९

भारत तेज़ी से दुनिया के कला जगत में अपनी जगह बना रहा है. यूरोप के देशों में भी भारतीय कलाकृतियों की पूछ बढ़ रही है जिससे भारतीय कलाकारों के लिए नई संभावनाएं पैदा हो रही हैं.

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दुनिया भर में मशहूर हैं भारतीय पेंटर एमएफ़ हुसैनतस्वीर: AP

मुंबई के 41 वर्षीय विवेक शर्मा गणेश की पेंटिग की ओर इशारा कर मुस्कुराते हुए कहते हैं, "यह पेटिंग मैंने बनाई है." विवेक ऐसी पेंटिंग बनाने में माहिर हैं, जो बिल्कुल फ़ोटो जैसी दिखती हैं. वह न केवल मुंबई स्थित अपने छोटे से स्टुडियो में पेटिंग बनाते हैं, बल्कि जर्मनी के कैमनित्स के बड़े कला संग्रहालय के लिए भी पेटिंग बनाते हैं. उन्हें अपनी कलाकृतियों के लिए इस अंतरराष्ट्रीय कला संग्रहालय की ओर से छात्रवृति भी मिली है.

जर्मन शहर ड्यूसलडोर्फ़ की एक गैलरी के मुखिया स्टेफ़ान विमर कहते हैं कि आज भारत से जुड़ी चीज़ें का ख़ासा चलन है. वह अपनी भारत दौरे के दौरान विवेक शर्मा से मिले. विमर की वर्षों से भारतीय कला में दिलचस्पी है. उनका कहना है कि कुछ समय पहले तक भारतीय कला को अफ़्रीकी कला के समान ही माना जाता था और इसे जातीय श्रेणी की कला में रखा जाता था. लेकिन अब भारतीय कला और कलाकारों को लेकर सोच बदल रही है. विमर की गैलरी जनवरी में विवेक शर्मा की पेंटिंगों की एक प्रदर्शनी लगाने वाली है.

इन दिनों ऑस्ट्रिया की राजधानी वियना के पास एसेल संग्राहलय में "चलो इंडिया" नाम से एक प्रदर्शनी चल रही है जिसमें यूरोप में भारतीय कला के बढ़ते चलन को आसानी से देखा जा सकता है. जर्मनी में भी भारतीय कला के चाहने वालों के लिए प्रदर्शनियों के ज़रिए भारतीय कला तक पहुंचाना आसान हो गया है.

दक्षिण एशिया से दुनिया भर में नाम कमाने वाले जाने माने कलाकारों में से एक पीटर नेगी ने दस साल पहले भारत की राजधानी दिल्ली में अपनी आर्ट गैलरी की शुरूआत की थी. इस गैलरी की एक शाखा बर्लिन में भी है जिसे साल भर पहले खोला गया था. बर्लिन को मौजूदा दौर में यूरोप के अहम कला केंद्रों में से एक माना जाता है. नेगी कहते हैं कि जिन कलाकारों के साथ वह काम करते हैं, वे सभी जर्मनी की राजधानी में अपनी कला को प्रदर्शित करने का मौक़ा चाहते हैं. यूरोप के सभी देशों के ग्राहक इस गैलरी से पेंटिंग और मूर्तियां खरीदने यहां आते हैं.  इस समय चल रही प्रदर्शनी मे भारतीय कलाकार हेमा उपाध्याय और अनिता दुबे की कलाकृतियां शामिल हैं.

सुबोध गुप्ता ऐसे भारतीय कलाकार हैं, जिन्हे सबसे अधिक अंतरराष्ट्रीय सफलता मिली है. सुबोध गुप्ता 1997 से ही नेगी से जुड़े हुए हैं. उनकी एक कलाकृति का मूल्य सौ से हज़ारों यूरो तक है. उन्हें 'वेरी हंगरी गॉड' नाम की मूर्ति के लिए ख़ासतौर से जाना जाता है. अपने हालिया काम पर गुप्ता कहते हैं कि उन्होंने जो मूर्तियां बनाई हैं वे दुनिया के विभिन्न देशों में जारी संकटों को दर्शाती हैं. ख़ासकर मध्य पूर्व की त्रासदी को.

नेगी और विमर दोनों का मानना है कि इस समय भारतीय कला की बड़ी मांग है.  नेगी कहते हैं कि जर्मनी में ज़्यादातर ग्राहक भारतीय कला को ख़ास संस्कृति के रूप में देखते हैं. वहीं विमर को इस बात में अभी संदेह है कि भारतीय कलाकृतियों की अवधारणा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचाना जाएगा. वह कहते हैं, "हमें भारतीय कला के प्रति लोगों की जागरूकता बढ़ाने के लिए बहुत कुछ करना है ताकि विदेशी ग्राहक भारतीय कला के नायाब़ नमूनों और महीन कला और कुशल कलाकारी को देखकर  ख़ुद-ब-ख़ुद कायल हो."

रिपोर्टः एजेंसियां/सरिता झा

संपादनः ए कुमार