दहशत फैलाता अहिंसा का संदेश
२३ फ़रवरी २०११जीन शार्प इस उम्र में भी नियमित रूप से अपना काम करते रहते हैं. धीमे लेकिन सधे कदमों से वह बॉस्टन के पूरब में अपने छोटे से दफ्तर तक पहुंचते हैं. यह उनकी संस्था एल्बर्ट आइनस्टाइन प्रतिष्ठान का भी दफ्तर है. चीन और सोमालिया से उनकी पुस्तक के अनुवाद की अर्जी आई है. उनकी मैनेजर जमीला रकीब उनसे निपट रही है. जीन शार्प का कहना है कि अक्सर ऐसे अनुरोध आते हैं, यह कोई अनहोनी नहीं है.
"तानाशाही से लोकतंत्र तक" एक बेस्टसेलर किताब है, इसके सिर्फ 93 पन्ने हैं और बर्मा से लेकर बोस्निया, मिस्र से लेकर जिम्बाब्वे तक हर देश के मामले में इसमें व्यवहारिक सुझाव दिए गए हैं कि कैसे एक रक्तहीन क्रांति हो सकती है. उनका पहला सुझाव यह है कि कायदे से उसकी योजना बनाई जानी चाहिए.
मशहूर क्यों हुई किताब
जीन शार्प की पुस्तक का 28 भाषाओं में अनुवाद हो चुका है. सन 1993 में म्यांमार की यात्रा के बाद शार्प ने यह पुस्तक लिखी थी. वहां उन्होंने अहिंसात्मक विरोध आंदोलन की प्रेरणा दी थी. चुनाव के बहिष्कार के लिए उन्होंने 198 लोगों को लामबंद किया था. उन्होंने सरकार से असहयोग के लिए भूख हड़ताल और धरनों का आयोजन किया था.
"सबसे पहले पता लगाओ कि सरकार कहां मजबूत और कहां कमजोर है" - जीन शार्प का नुस्खा है. वह कहना नहीं भूलते कि हर तानाशाही की कमजोरियां होती हैं. और उनकी सबसे बड़ी सीख है कि अपनी आजादी की खातिर हिंसा के बदले अहिंसक प्रतिरोध.
कौन हैं जीन शार्प
1950 के दशक में जब सैनिक के रूप में शार्प को कोरिया युद्ध में जाने का आदेश दिया गया था, तो उन्होंने इस आदेश को नहीं माना और इसकी वजह से उन्हें 9 महीने जेल में काटने पड़े. 30 साल तक वह हार्वर्ड विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र के अध्यापक रहे. 1973 में उनकी पुस्तक आई, जिसका नाम था "अहिंसात्मक आंदोलन की राजनीति".
जीन शार्प शर्मीले स्वभाव के चिंताशील व्यक्त हैं. उनका सुदृढ़ विश्वास है कि हथियारों के बिना भी जीत हासिल की जा सकती है. वेनेजुएला, ईरान या बर्मा में उनके खिलाफ सीआईए एजेंट होने के आरोप लगाए गए. इसके जवाब में एक थकी सी मुस्कान के साथ वह कहते हैं, "मैं कभी भी किसी सरकार से हाथ मिलाकर नहीं चलूंगा." और हां, अपनी पुस्तकों से उन्होंने एक पैसा भी नहीं कमाया है. उनके दो आदर्श पुरुष हैं, महात्मा गांधी और मार्टिन लूथर किंग.
रिपोर्ट: निकोले मार्कवाल्ड/उभ
संपादन: ए कुमार